Pages

Monday, October 25, 2010

प्राइस अर्निंग क्या है

मूल्य-आय अनुपात का मतलब प्राइस अर्निंग(पीई ) अनुपात से है । यह दरअसल किसी भी शेयर का वैल्यूएशन जानने के लिए सबसे प्राथमिक स्तर का मानक है। दूसरे शब्दों में इसे इस तरह समझा जा सकता है कि यह अनुपात बताता है कि निवेशक किसी शेयर के लिए उसकी सालाना आय का कितना गुना खर्च करने के लिए तैयार हैं। सीधे शब्दों में किसी शेयर का पीई अनुपात दरअसल वर्षों की संख्या है, जिनमें शेयर का मूल्य लागत का दोगुना हो जाता है। जैसे अगर किसी शेयर का मूल्य किसी खास समय में 100 रुपए है और उसकी आय प्रति शेयर 5 रुपए है, तो इसका मतलब यह है कि उसका पीई अनुपात 20 होगा। यानी अगर सारी परिस्थितियां समान हों तो 100 रुपए के शेयर का दाम 20 साल में दोगुना हो जाएगा। यानी उस शेयर का पीई अनुपात उस खास समय में 20 है।

किसी कंपनी के वैल्यूएशन में पीई का क्या महत्व है?

पीई हमें केवल यह बताता है कि बाजार किसी शेयर पर कितना बुलिश या सकारात्मक है। पीई से अपने आप में कोई निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता। किसी भी नतीजे पर पहुंचने के लिए कुछ दूसरे पीई अनुपातों से इसकी तुलना जरूरी होती है। पहला, तो खुद उस कंपनी का पिछले 5-7 साल का ऐतिहासिक पीई। दूसरा, उसी के क्षेत्र में काम करने वाली दूसरी कंपनियों के पीई अनुपात और तीसरा, बेंचमार्क सूचकांक जैसे सेंसेक्स का पीई अनुपात। किसी कंपनी का पीई बहुत ज्यादा होने से दो निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं। पहला, कंपनी को उसके सही मूल्य से बहुत ज्यादा भाव मिल रहा है और इसलिए शेयर महंगा है। दूसरा, बाजार को यह पता है कि आने वाले दिनों में इस कंपनी की वृद्घि दर काफी अधिक रहने वाली है और इसलिए उसके लिए ऊंचे भाव पर भी बोली लगाई जा रही है।
प्राइस अर्निंग आधारित परिसंपत्ति आवंटन से समय के साथ निवेशकों को मिल सकता है बेहतर प्रतिफल। आइए, इसे एक उदाहरण के माध्यम से समझते हैं।

सक्रिय निवेशक बेहतरीन शेयरों के चुनाव पर अधिक ध्यान देते हैं। इस दौरान कहीं न कहीं चूक भी हो सकती है। कारोबारी चक्र के कुछ चरणों में, एक वर्ग के रूप में इक्विटी का प्रदर्शन बुरा भी होता है।

वैसे निवेशक जो समय-समय पर विभिन्न परिसंपत्तियों में अपना आवंटन बदलते रहते हैं, उनका प्रदर्शन एक ही परिसंपत्ति वर्ग में निवेश करने वालों की तुलना में बेहतर होता है। परिसंपत्ति आवंटन की नीति स्वभाविक रूप से फंड ऑफ फंड की प्रक्रिया की ओर ले जाती है।

फंड ऑफ फंड के तहत म्युचुअल फंड पोर्टफोलियो को विभिन्न परिसंपत्ति वर्गों में निवेश किया जाता है। फ्रैंकलिन टेम्पलटन डायनामिक पीई रेश्यो फंड (एफटीडीपीई) फंड ऑफ फंड का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। एफटीडीपीई ने पिछले पांच वर्षों में 24 प्रतिशत की सालाना चक्रवृध्दि (सीएजीआर) के हिसाब से प्रतिफल दिया है जबकि निफ्टी ने 25 प्रतिशत सीएजीआर का प्रतिफल दिया है।

हालांकि, एफटीडीपीई का जोखिम समायोजित प्रतिफल अधिकांश विशुध्द इक्विटी फंडों की तुलना में काफी बेहतर रहा है। साल 2008 के दौरान जब बाजार मंदी के दौर से गुजर रहा था और जब निफ्टी में 55 प्रतिशत की गिरावट आई थी, तब एफटीडीपीई को हुआ अधिकतम घाटा 30.5 प्रतिशत का था। पिछले 12 महीनों में भी इसका प्रदर्शन जबरदस्त रहा है।

सालाना आधार पर जहां सूचकांक में 22 प्रतिशत की बढ़त दर्ज की गई, वहीं एफटीडीपीई में 22.7 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई(इस वर्ग का प्रतिफल 19.2 प्रतिशत था)। एफओएफ की नीति यांत्रिक है। महीने के अंत के निफ्टी के पीई रेश्यो से इसका आवंटन जुड़ा हुआ है। अगर निफ्टी का पीई कम है तो परिसंपत्ति का 100 प्रतिशत तक इक्विटी में लगाया जा सकता है।

पीई रेश्यो बढ़ने की दशा में इक्विटी में निवेश को घटाया जाता है। अगर पीई अधिक होता है तो 100 प्रतिशत परिसंपत्तियों का निवेश ऋण में किया जा सकता है। एक सीमा यह है कि इक्विटी के तहत सभी निवेश फ्रैंकलिन इंडिया ब्लूचिप फंड में किए जाते हैं और ऋण में निवेश के लिए टेम्पलटन इंडिया इनकम फंड को चुना गया है।

इनमें से कोई फंड विशेष नहीं है। ये सभी अपने अपने वर्ग के अनुसार औसत प्रतिफल ही देते हैं। दूसरी बात यह है कि एक वर्ग के रूप में एफओएफ विशुध्द रूप से विशाखित इक्विटी फंडों की तुलना में यादा खर्चीले होते हैं। परिसंपत्ति आवंटन एक नीति की तरह काम करता है। इसकी वजह यह है कि ऐतिहासिक प्रतिफल मीन-प्रतिवर्ती और सामान्यतया वितरित होते हैं।

दीर्घावधि में शेयर बाजार का कारोबार ऐतिहासिक औसत पीई के आस पास होता है और इसका प्रतिफल भी ऐतिहासिक औसत प्रतिफल जैसा होता है। यह जानते हुए कि आम तौर पर वितरित आंकड़ों का व्यवहार कैसा है हम निवेश के कुछ उपयोगी तरीकों की भविष्यवाणी कर सकते हैं।

सितंबर 1999 से निफ्टी का सीएजीआर 13.5 प्रतिशत रहा है इसमें नकारात्मक और सकारात्मक दोनों ही अवधि शामिल हैं। 10 वर्षों का औसत पीई 17.6 प्रतिशत था जबकि मीडियन पीई 17.3 प्रतिशत और मोडल वैल्यू 14 से 15 के बीच रहा है। मानक विचलन 3.5 का था। समसन्य वितरण का नियम कहता है कि वक्त के 68 प्रतिशत में वैल्यूएशन 14 से 21 पीई के बीच रहेगा और 98 प्रतिशत वक्त में पीई 10 से 25 के बीच रहेगा।

इसके अनुसार अगर वैल्यूएशन कम होने पर निफ्टी का कारोबार किया जा रहा है तो इक्विटी में निवेश बढ़ाया जाना चाहिए और इसके विपरीत अगर निफ्टी का कारोबार अधिक वैल्यूएशन पर किया जा रहा है तो इक्विटी में निवेश घटाया जाना चाहिए। हर छह महीने पर एफटीडीपीई के परिसंपत्ति आवंटन का खुलासा किया जाता है।

मार्च 2008 में जब पीई 20.6 था तब इक्विटी में 50 प्रतिशत का आवंटन किया गया था। मार्च 2009 में जब पीई 14.3 प्रतिशत था तो लगभग 90 प्रतिशत परिसंपत्तियों का निवेश इक्विटी में किया गया था। यह माना जा सकता है कि सितंबर 2009 में पीई 22.6 प्रतिशत होने पर इक्विटी की अपेक्षा ऋण में निवेश बढ़ाया जा सकता है। एफटीडीपीई में निवेश करना बेहतर हो सकता है।

यह यांत्रिक पीई आधारित परिसंपत्ति आवंटन की नीति अपनाता है। कोई निवेशक चाहे तो एफटीडीपीई की ही भांति विभिन्न फंडों में अपनी परिसंपत्तियों का आवंटन कर सकता है। विशाखण के कई तरीके हैं।

उदाहरण के लिए, कोई निवेशक 3 या 5 बेहतर प्रदर्शन करने वाले विशाखित इक्विटी फंडों और इनकम फंडों में निवेश कर सकता है या फिर वह मिड-कैप फंडों पर विचार कर सकता है जो बाजार में तेजी के समय निफ्टी की तुलना में बेहतर प्रतिफल दे सकते हैं।

निवेशक चाहे तो करेंसी या कमोडिटी में भी निवेश कर विविधता ला सकता है। निश्चित ही इस प्रकार के प्रत्येक विशाखण में नया जोखिम समाहित होता है। एफटीडीपीई की नीति से यह स्पष्ट होता है कि इक्विटी में निवेश घटाने का वक्त आ गया है।

यह रुढ़िवादिता लगती है क्योंकि अर्थव्यवस्था में अभी सुधार होना शुरू ही हुआ है। लेकिन एक बात तो साफ हो गई है कि इक्विटी के मूल्य ऐतिहासिक रूप से अधिक हैं। अगर वर्तमान मूल्यांकन सही हैं तो अगले 6 से 12 महीने में आय में जबरदस्त बढ़ोतरी होनी चाहिए।


ट्रेलिंग पीई और अनुमानित पीई क्या हैं?

ट्रेलिंग पीई किसी शेयर की कीमत और पिछले 12 महीनों की उसकी आय के अनुपात को कहते हैं। इसी तरह अनुमानित पीई अगले 12 महीने की अनुमानित आय प्रति शेयर के आधार पर निकाला जाता है।

पीई से किसी शेयर की सही कीमत कैसे तय करें?

अक्सर किसी कंपनी के लिए सारी परिस्थितियां समान नहीं होतीं। कंपनी की आय हर साल या तो बढ़ती है या घटती है। इसके अलावा कंपनी अगर एफपीओ के जरिए नए शेयर बाजार में लाती है तो उससे शेयरों की कुल संख्या में भी बढ़ोतरी होती है। इन सभी का उसकी आय प्रति शेयर पर असर पड़ता है। अगर किसी कंपनी का ऐतिहासिक पीई पिछले पांच साल से 30 रहा हो और एकाएक बाजार की गिरावट के कारण वह 20 के पीई पर मिल रहा हो, तो वह शेयर सस्ता कहा जाएगा। लेकिन अगर वह कंपनी इंफोसिस हो जिसकी आय पर अमेरिका में संभावित मंदी के कारण असमंजस का माहौल बना हो, तो फिर एक नजर में आप 20 के पीई को सस्ता नहीं कह सकते।

1 comments:

kamal patel said...

grate work sameer. if you write more about share market in hindi, than it's very usefull for others